नेहरू बाल पुस्तकालय >> सोना की कहानी सोना की कहानीतारा तिवारी
|
9 पाठकों को प्रिय 386 पाठक हैं |
सोना एक ऊँटनी के बच्चे का नाम है तारा तिवारी इसी बच्चे की कहानी बता रही हैं.....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
सोना की कहानी
एक ऊँटनी अपने बेटे सोना के साथ रेगिस्तान में धीरे-धीरे चली जा रही थी।
खूब गरमी थी। धूप बहुत तेज थी। सूरज अपनी पूरी ताकत से चमक रहा था।
पीली-पीली बालू धूप में शीशे की तरह चमक रही थी।
अचानक सोना रुक गया। बालू में अपने पाँव धँसा कर बुड़बुड़ाया, ‘‘मैं अब और नहीं चलूँगा। मुझको बड़ी प्यास लगी है। मुझको पानी चाहिए, माँ !’’
माँ ने प्यार से उसकी ओर देखा। उसने सिर झुका कर सोना का माथा चूमा।
‘‘बस, बस बेटे’’ ऊँटनी ने कहा। ‘‘मैं जानती हूँ तुमको बड़ी प्यास लगी है लेकिन अब ज्यादा नहीं चलना पड़ेगा। पानी पास ही है, वह देखो।’’
उसने अपनी लंबी गरदन बढ़ा कर उस, तरफ इशारा किया जहाँ कुछ दूरी पर, पेड़ों की क़तार दिखायी दे रही थी।
‘‘देखो वह ऊँचे-ऊँचे पेड़। देख रहे हो न ? रेगिस्तान में जहाँ पेड़ होते हैं वहाँ पानी भी होता है। हो सकता है वहाँ कोई छोटा-मोटा गाँव भी हो। वहाँ और बहुत-से जानवर होंगे। तुम उनके साथ खेलना। चलो बेटा, मेरा राजा बेटा !’’
सोना को अच्छा लगा।
‘‘पानी, लोग, जानवर ! तब तो मजा आयेगा। जल्दी चलो,. माँ !’’
वह तेज-तेज़ चलने लगा। जल्दी ही वे पेड़ों के पास पहुँच गये। ऊँटनी ने सिर उठाकर हवा में कुछ सूँघा।
‘‘इस तरफ आओ, बेटे ! यहाँ पास ही कहीं से पानी की महक आ रही है।
पानी आसानी से मिल गया। ऊँचे-ऊँचे पेड़ों और घनी झाड़ियों से घिरा एक बड़ा-सा तालाब था। वे जल्दी-जल्दी उधर बढ़े। गर्दन झुका कर दोनों पानी पीने लगे।
पीली-पीली बालू धूप में शीशे की तरह चमक रही थी।
अचानक सोना रुक गया। बालू में अपने पाँव धँसा कर बुड़बुड़ाया, ‘‘मैं अब और नहीं चलूँगा। मुझको बड़ी प्यास लगी है। मुझको पानी चाहिए, माँ !’’
माँ ने प्यार से उसकी ओर देखा। उसने सिर झुका कर सोना का माथा चूमा।
‘‘बस, बस बेटे’’ ऊँटनी ने कहा। ‘‘मैं जानती हूँ तुमको बड़ी प्यास लगी है लेकिन अब ज्यादा नहीं चलना पड़ेगा। पानी पास ही है, वह देखो।’’
उसने अपनी लंबी गरदन बढ़ा कर उस, तरफ इशारा किया जहाँ कुछ दूरी पर, पेड़ों की क़तार दिखायी दे रही थी।
‘‘देखो वह ऊँचे-ऊँचे पेड़। देख रहे हो न ? रेगिस्तान में जहाँ पेड़ होते हैं वहाँ पानी भी होता है। हो सकता है वहाँ कोई छोटा-मोटा गाँव भी हो। वहाँ और बहुत-से जानवर होंगे। तुम उनके साथ खेलना। चलो बेटा, मेरा राजा बेटा !’’
सोना को अच्छा लगा।
‘‘पानी, लोग, जानवर ! तब तो मजा आयेगा। जल्दी चलो,. माँ !’’
वह तेज-तेज़ चलने लगा। जल्दी ही वे पेड़ों के पास पहुँच गये। ऊँटनी ने सिर उठाकर हवा में कुछ सूँघा।
‘‘इस तरफ आओ, बेटे ! यहाँ पास ही कहीं से पानी की महक आ रही है।
पानी आसानी से मिल गया। ऊँचे-ऊँचे पेड़ों और घनी झाड़ियों से घिरा एक बड़ा-सा तालाब था। वे जल्दी-जल्दी उधर बढ़े। गर्दन झुका कर दोनों पानी पीने लगे।
|
विनामूल्य पूर्वावलोकन
Prev
Next
Prev
Next
लोगों की राय
No reviews for this book